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भक्ति आंदोलन को परंपरा के रूप में देखें न कि आंदोलन के रूप में : राकेश कंवर, देव सदन में कुल्लू सहित्य उत्सव 2025 शुरू, देश और प्रदेश के साहित्यकार पहुंचे कुल्लू

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भक्ति आंदोलन को परंपरा के रूप में देखें न कि आंदोलन के रूप में : राकेश कंवर,
देव सदन में कुल्लू सहित्य उत्सव 2025 शुरू, देश और प्रदेश के साहित्यकार पहुंचे कुल्लू
पूजा कश्यप /देसी चैनल कुल्लू

हिमतरु प्रकाशन समिति तथा भाषा-संस्कृति विभाग के संयुक्त आयोजन ‘कुल्लू साहित्य उत्सव-2025’ का शुभारंभ ढालपुर स्थित देवसदन के सभागार में भाषा एवं संस्कृति विभाग के सचिव राकेश कंवर ने वर्चुअल माध्यम से किया। तीन दिवसीय इस कुल्लू साहित्य उत्सव के शुभारंभ अवसर पर राकेश कंवर ने अतिथि वक्ताओं का स्वागत करते हुए कहा कि हिमतरु का यह प्रयास सराहनीय है, जिसके माध्यम से स्थापित लेखकों तथा नवोदित लेखकों व विद्यार्थियों के बीच बेहतरीन सामंजस्य स्थापित होगा, जिसके सुखद परिणाम आएंगे। उत्सव के प्रथम सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ लेखिका डाॅ. रेखा वशिष्ठ ने की जबकि कुल्लू साहित्य उत्सव कोर कमेटी के प्रमुख डाॅ. निरंजन देव शर्मा ने अपने स्वागत भाषण में सभागार में उपस्थित समस्तजनों का अभिवादन किया।


कुल्लू साहित्य उत्सव-2025 के शुभारंभ अवसर पर भाषा एवं संस्कृति विभाग के सचिव राकेश कंवर कहा कि इस बार के आयोजन का प्रमुख विषय भक्ति काल में सूफी एवं निर्गुण धारा रखा गया है, जो रोचक एवं गंभीर विषय है। उन्होंने कहा कि यदि इतिहास पर नज़र डालें तो यह एक ऐसा वृक्ष है, जिसकी जड़, तना एवं शाखाएं क्या हैं, यह हमारे जानने से परे हैं, लेकिन इसे पढ़ते समय हमें बचते रहने की आवश्यकता है क्योंकि इतिहास की सत्यता पूरी तरह से सिद्ध नहीं हो पाती। उन्होंने कहा कि इतिहास का एक अपना लम्बा कालखण्ड होता है, जिसमें अलग-अगल साम्राज्य तथा अलग-अलग भाषाओं का वर्चस्व रहता है, इसलिए यह हमार जानने से परे हैं, लेकिन बावजूद इसके निश्चितता की पड़ताल करना आवश्यक होता है। राकेश कंवर ने कहा कि यदि हम विशाल भारत की बात करें तो उसका क्षेत्र पश्चिमी एशिया तक फैला था तथा हड़प्पा एवं सिंधु घाटी सभ्यता, दक्षिणी भारत के व उत्तरी भारत के इतिहास भी भिन्नता दिखती है। बहुत सी परंपराओं का समांतर, सैंकड़ों साल चलने वाला, कभी तेज़ और कभी धीमी गति से, अलग अलग कारकों से प्रभावित होता, साहित्य। लोगों को आंदोलित करती परंपराओं का ख़ूबसूरत परवाह, पर आंदोलन नहीं।इनकी भौगोलिक सीमाएं भी भिन्न हैं। उन्होंने कहा कि बहुत बार नई खोज और जानकारियों के कारण और हर बार देखने वाले से देश काल के और दृष्टिकोण के बदल जाने के कारण। कहा कि भक्ति काव्य को सुन कर आनंदित होने के लिए इसके इतिहास और कहने वाले जाति और धर्म को जानने की कतई ज़रूरत नहीं।

उन्होंने अजेय की पुस्तक रोहतांग : आर पार की चर्चा करते हुए इस पुस्तक को आयोजन के संदर्भ में पढ़े जाने की आवश्यकता पर बल दिया।
उन्होंने आयोजन समिति प्रकाशन को इस प्रकार के आयोजन सफलता को लेकर शुभकामनाएं दी।
साहित्य उत्सव के प्रथम सत्र के प्रमुव वक्ता एवं जनसंदेव टाइम्स के प्रधान संपादक डाॅ. सुभाष राय ने ‘भक्ति आंदोलन और दक्षिण में स्त्री कवयित्रियां’- अक्का महादेवी और आडांल के विशेष संदर्भ में अपना वक्तव्य दिया तथा वक्तव्य के उपरांत खुली चर्चा का आयोजन भी किया गया। डाॅ. संजू पाॅल ने ‘कबीर के चिंतन में जहान की चिंता: रंग और कूची की आंख से विषय पर अपनी प्रस्तुति दीं।
इस दौरान इशिता आर. गिरीश द्वारा लिखित कहानी संग्रह ‘सपनों का ट्रांसमिशन पुस्तक का लोकार्पण भी किया गया।
कार्यक्रम में हिमतरु के तमाम पदाधिकारी व सदस्यगण,
कुल्लू साहित्य के तमाम पदाधिकारियों एवं सदस्य के अतिरिक्त जिला भाषा अधिकारी कुल्लू प्रोमिला गुलेरिया, वरिष्ठ लेखक गंगा राम राजी, रूपेश्वरी शर्मा, विभिन्न महाविद्यालयों के प्रमुख एवं प्राध्यापकगण एवं विद्यार्थी मौजूद रहे।

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